शताब्दी का सफ़र: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की 100 वर्षों की गाथा
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की शताब्दी वर्षगांठ के उपलक्ष्य में विशेष स्मारक डाक टिकट और स्मारक सिक्के जारी किए।
यह क्षण न केवल संघ के 100 वर्षों की गौरवगाथा का प्रतीक है, बल्कि राष्ट्र सेवा, संगठन और समर्पण की अद्वितीय परंपरा का भी प्रमाण है।
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स्थापना और आरंभ (1925)
27 सितम्बर 1925, विजयादशमी के दिन डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने नागपुर में कुछ युवाओं के साथ मिलकर एक छोटा-सा संगठन खड़ा किया। इसका उद्देश्य था अनुशासन, संस्कार और राष्ट्रभावना का विकास। उसी दिन की छोटी-सी शाखा आज दुनिया भर में फैले सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन में परिवर्तित हो चुकी है।
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समय की कसौटी पर संघ
1948 – पहला प्रतिबंध: महात्मा गांधी की हत्या के बाद संघ पर प्रतिबंध लगाया गया। यह संघ के लिए बड़ा झटका था, परंतु संगठन ने पुनः खड़ा होकर अपनी पहचान बनाई।
1975 – आपातकाल का दौर: इंदिरा गांधी द्वारा लगाई गई इमरजेंसी में संघ फिर प्रतिबंधित हुआ। कार्यकर्ता भूमिगत रहकर लोकतंत्र की रक्षा में जुटे। यही कालखंड संघ की संगठनात्मक दृढ़ता का प्रतीक बना।
1992 – बाबरी मस्जिद विवाद: अयोध्या आंदोलन के बाद संघ व अन्य संगठनों पर फिर प्रतिबंध लगाया गया। किंतु शीघ्र ही यह हट गया और संघ पहले से अधिक जनसमर्थन लेकर उभरा।
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संगठन का विस्तार और विविध शाखाएँ
संघ ने केवल शाखाओं तक खुद को सीमित नहीं रखा, बल्कि समाज जीवन के लगभग हर क्षेत्र में अपने संगठन खड़े किए:
छात्र क्षेत्र: अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP)
मज़दूर और किसान: भारतीय मज़दूर संघ (BMS) और भारतीय किसान संघ (BKS)
सेवा कार्य: सेवा भारती और राष्ट्रीय सेवा भारती द्वारा स्वास्थ्य, शिक्षा और आपदा राहत
अंतरराष्ट्रीय स्तर: हिंदू स्वयंसेवक संघ (HSS) आज 100 से अधिक देशों में सांस्कृतिक गतिविधियाँ संचालित करता है।
आज संघ परिवार के अंतर्गत सैकड़ों संगठन हैं, जो शिक्षा, सेवा, संस्कार और राष्ट्र निर्माण में सक्रिय हैं।
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राजनीति की मुख्यधारा में योगदान
यद्यपि संघ स्वयं को “सांस्कृतिक संगठन” मानता है, किंतु उसके कार्यकर्ताओं ने राजनीति में भी नई धारा उत्पन्न की।
1951 में जनसंघ और 1980 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का गठन हुआ।
अटल बिहारी वाजपेयी और नरेन्द्र मोदी जैसे प्रधानमंत्री संघ के संस्कार से निकले।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, अनेक मुख्यमंत्री, सांसद, विधायक, पार्षद तक संघ की शाखाओं से निकले स्वयंसेवक रहे हैं।
इस प्रकार संघ ने ग्राम पंचायत से लेकर संसद भवन तक राष्ट्र के राजनीतिक जीवन को दिशा देने में भूमिका निभाई।
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सेवा और समाज का आधार
गुजरात भूकंप से लेकर कोरोना महामारी तक, सेवा भारती जैसे संगठनों ने लाखों पीड़ितों की सेवा की। स्वास्थ्य शिविर, निःशुल्क शिक्षा, गौसेवा, ग्रामीण विकास और आपदा राहत कार्य संघ के “सेवा ही संगठन” के मूल मंत्र को साकार करते हैं।
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आलोचना और विवाद
संघ की यात्रा में आलोचना भी साथ रही। गांधी हत्या का आरोप, बाबरी विवाद और सांप्रदायिक तनावों पर प्रश्न उठे। किंतु इन आलोचनाओं के बीच संघ ने लगातार सेवा और अनुशासन की परंपरा को आगे बढ़ाया।
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शताब्दी का भावनात्मक क्षण
आज जब संघ अपनी शताब्दी मना रहा है, तो यह केवल संगठन की नहीं, बल्कि भारत के समाज-जीवन की यात्रा भी है। गाँव-गाँव की शाखाओं में छोटे-छोटे स्वयंसेवकों की टोली राष्ट्रभक्ति का बीज बो रही है। यही बीज 100 वर्षों से भारतीय समाज की चेतना को सिंचित कर रहा है।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा जारी स्मारक डाक टिकट और सिक्का इस शताब्दी को ऐतिहासिक स्मरणीय बनाते हैं। यह संदेश देता है कि संगठन की शक्ति, अनुशासन और सेवा ही राष्ट्र निर्माण की आधारशिला हैं।
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निष्कर्ष
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 100 वर्षों की यात्रा संघर्ष, सेवा और संगठन की अनुपम गाथा है। प्रतिबंधों, आलोचनाओं और कठिनाइयों के बावजूद संघ आज भी लाखों स्वयंसेवकों के साथ “राष्ट्र प्रथम” के संकल्प पर खड़ा है।
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